अंतर
मैं समंदर का साहस,
तुम किनारे की कायरता।
संग तो, सहज ना होगा।
मैं आग की लाल लपट,
तुम धुएं का कालापन।
रंग निःसंदेह, अलग ही होगा।
मैं पेड़ की ऊंची डाल,
तुम सूखे पत्तों की टहनी।
कद एक रहे, संभव न होगा।
ना मेरे मन में अब कोई चाह,
ना तुम्हारे मन में प्रेम प्रवाह।
अलगाव कुछ गलत ना होगा।
तुम किनारे की कायरता।
संग तो, सहज ना होगा।
मैं आग की लाल लपट,
तुम धुएं का कालापन।
रंग निःसंदेह, अलग ही होगा।
मैं पेड़ की ऊंची डाल,
तुम सूखे पत्तों की टहनी।
कद एक रहे, संभव न होगा।
ना मेरे मन में अब कोई चाह,
ना तुम्हारे मन में प्रेम प्रवाह।
अलगाव कुछ गलत ना होगा।
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