Soch
मुझे चाँद ना भी कहो... मेरी आँखों में सवेरा, मेरी ज़ुल्फ़ों में शाम ना भी देखो, मेरे गालों की लाली, कानों की बाली, बातों की मिठास, अधरों की प्यास, पैरों की आहट, साँसों की कंपकपाहट न भी महसूस करो... क्योंकि बस इतनी तो नहीं हूँ मैं। हाँ, कुछ किताबों में इतना ही पढ़ा होगा तुमने, बड़े पर्दे पर इतना ही देखा होगा तुमने, करीबी दोस्तों से इतना ही सुना होगा तुमने, लेकिन बस इतनी तो नहीं हूँ मैं। बहुत है मुझमें भी प्रतिभा, साहस, आधार, अलंकार, अहंकार... वो सब कुछ जो तुममें है। या तुमसे ज्यादा ही कहीं। जानने की इच्छा नहीं है तुम्हारी जानती हूँ। मानने की इच्छा नहीं है तुम्हारी मानती हूँ। क्योंकि अगर जानते और मानते... तो ये लाल फूल, chocolate के कुछ डब्बे और गुलाबी teddy bear ले कर नहीं आते, मुझे bike की जगह scooty नहीं सिखाते, सिर्फ romantic movies नहीं ले जाते, Adult jokes मुझसे नहीं छिपाते, कहाँ जमीन लेनी है, कहाँ घर बनाना है, सलाह मुझसे भी लिए जाते। और जनाब! सुबह की चाय कभी तुम भी बनाते। तुम्हारी equality की परिभाषा और modern ख्याल, मेरे tattoo वाले हाथ, और छोटे बाल... तक ही सी